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फि़दा-ए-दिलबर-ए-रंगीं अदा हूँ / वली दक्कनी

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फि़दा-ए-दिलबर-ए-रंगीं अदा हूँ
शहीद-ए-शाहिद-ए-गुल गूँ क़बा हूँ

हर इक मह रू के नहीं मिलने का ज़ौक़
सुख़न के आशाना का आशना हूँ

किया हूँ तर्क नर्गिस का तमाशा
तलबगार-ए-निगार-ए-बाहया हूँ

न कर शमशाद की तारीफ़ मुझ पास
कि मैं उस सर्वक़द का मुब्तिला हूँ

किया मैं अर्ज़ उस ख़ुर्शीदरू सूँ
तू शह-ए-हुस्‍न मैं तेरा गदा हूँ

सदा रखता हूँ शौक़ उसके सुख़न का
हमेशा तिश्‍ना-ए-आब-ए-बक़ा हूँ

क़दम पर उसके रखता हूँ सदा सर
'वली' हममशरब-ए-रंग-ए-‍हिना हूँ