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फीकी-फीकी ही लगती है आग के आगे तन-मन की / प्राण शर्मा
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फीकी-फीकी ही लगती है आग के आगे तन-मन की
आग समंदर की हो या हो आग किसी बीहड़ वन की
आग लगे तो इसकी कीमत राख से ज्यादा क्या होगी
पीपल की लकड़ी हो चाहे या हो लकड़ी चन्दन की
झूम रहे हैं सभी परिंदे मस्त हवाओं में खुलकर कर
लगता है मन से बरसेगी आज बदरिया सावन की
संत-सरीखा कोई साथी मिल जाए तो बात बने
नस-नस को महका देती है इक लकड़ी ही चन्दन की
आज हमारे भाग्य जगे हैं प्रीतम सपनों में आये
क्यों न भला मुस्काये मन में कोई कली अभिनन्दन की ।