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फुटकर शेर / अल्ताफ़ हुसैन हाली
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1.आगे बढ़े न किस्सा-ए-इश्क़-ए-बुतां से हम,
सब कुछ कहा मगर न खुले राजदां से हम।
2.बे-क़रारी थी सब उम्मीद-ए-मुलाक़ात के साथ,
अब वो अगली सी दराज़ी शब-ए-हिजरां में कहां।
3.फरिश्ते से बढ़कर है इंसान बनना,
मगर इसमें लगती है मेहनत ज़ियादा।
4.इश्क़ सुनते हैं जिसे हम वो यही है शायद,
ख़ुद-ब-ख़ुद दिल में है इक शख़्स समाया जाता।
5.जानवर आदमी फरिश्ते ख़ुदा,
आदमी की हैं सैंकड़ों किस्में।