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फुटकर शेर / मेला राम 'वफ़ा'

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  • मआले-कार मालूम इश्तियाके हम कलामी का

चिराग़े-तूर इक शोला है दाग़े-ना-तमामी का।

  • बाहम तुझे ग़ैरों से ऐ रश्क़े-क़मर देखा

देखा तो न जाता था नाचार मगर देखा
मिलने का न खिंचने का कुछ उन पे असर देखा
ये चाल भी चल देखी ये सहर भी कर देखा।

  • भला होता तो क्या होता, बुरा होता तो क्या होता

पडें इस बहस में अब क्या कि क्या होता तो क्या होता
दिल बे-मुद्दआ भी पाएमाले कस-म्पुर्सी है
महब्बत का अगर कुछ मुद्दआ होता तो क्या होता।

  • ख़ूने-जिगर आंखों से रवां हो के रहेगा

इक रोज़ अयाँ जख़्मे-जिगर हो के रहेगा।

• बे महरिए दोस्त का गिला क्या
दिल सी शये-हेच का गिला क्या
बरबादिए-दिल की क्या शिकायत
पामालिए शौक़ का गिला क्या

• हश्र में वो कह रहे हैं क़त्ल कर दूंगा अगर
वा लबे-फ़रयाद मेरे दाद-खाहों ने किया
दाद के क़ाबिल था मेरा ज़ब्ते-उल्फ़त बज़्म में
राज़ अफ्शा तेरी दुज़दीदा निगाहों ने किया

• गरीबों की नहीं जिन में रसाई
उन ऐवानों को अब ढाना पड़ेगा
हमीं बकते चले जाएंगे कब तक
तुम्हें भी कुछ तो फरकाना पड़ेगा

• मैं हूँ बेज़ार ज़माने भर से
और तुम मुझ से हो बेज़ार! ये क्या

• वो बोले मिरी ना'श को देख कर
ज़माना बड़ा बेवफ़ा हो गया।

• फलक का न छोड़ा ज़मीं का न छोड़ा
दिले-इश्क़-ख़ू ने कहीं का न छोड़ा
वो दुनिया के भी अब कहां रह गये हैं
जिन्हें ऐ बुतो तुम ने दीं का न छोड़ा।

• खलिश-कारी से दिल खूं कर दिया है तीरे-गमजा ने
बड़ी चाहत से ज़ालिम ने कलेजे में उतारा था

• मैं मिट गया तो गर्दिशे-दौरां भी थम गई
मेरे ही वास्ते सितम-रोज़गार था

• चला आया है मैखाने में तो ख़ाली न जा वाइज़
इधर आ कुछ अमामा रहम रख, कुछ दाम लेता जा

• तरीके अर्ज़-ए-मतलब ऐ 'वफ़ा' इस बज़्म में ये है
ज़बां को बंद रख और हिचकियों से काम लेता जा

• आदमी काम आ ही जाता है
  हमसे कीजे न इजतिराब बहुत
  लीजिये चल के कुछ 'वफ़ा' से सलाह
  उस ने देखे हैं इंकिलाब बहुत

• फिर मुझे आरज़ुए-ज़ीस्त हुई है पैदा
याद आई है उन्हें कद्रे-वफ़ा मेरे बाद

• वो बहरे-फातिहा आये हुए बैठे हैं मदफन पर
मुझे ख़ूने-जिगर रोना पड़ा है मर्गे-दुश्मन पर

• मुख़्तसर ये हैं हमारी दास्ताने-ज़िन्दगी
रात दिन सदमे गुज़रते हैं दिले-नाशाद पर

• बात इतनी सी है लेकिन लब पर आ सकती नहीं
चाहते हैं आप को और चाहते हैं दिल से हम

• नये आसार बर्बादी के हैं अब की बहारों में
बनाएं हैं नशेमन बिजलियों ने लालाज़ारों में।

• रही लड़ती रक़ीबों से वो चश्मे-शर्मगीं बरसों
महब्बत में दिले-बेताब पर छुरियां चलीं बरसों

• कहे अहले-दौलत से कौन ऐ 'वफ़ा'
की दौलत ही दुनिया में सब कुछ नहीं

• ज़राफत-कार है क्या क्या फ़िराके-यार पहलू में
उठी जो दर्द की रौ बन गई तलवार पहलू में
जिगर की बे-कली, दिल की तड़प सोने नहीं देती
शबे-फुरकत लिए बैठा हूँ दो बीमार पहलू में।

• पुरफिक्र हैं लड़कपन, ग़मगीं जवानियाँ हैं
ये ज़िंदगानियां भी क्या ज़िंदगानियां हैं
फ़रमा-रवाए-मुल्के-दिल हैं कलब की परियाँ
जो घर की रानियां हैं, बस घर की रानियाँ हैं।

• क़ियामत का उठाना है उठाना उनके कूचे से
ये दीवाने तुम्हारे जो तमाशा बन के बैठे हैं

• रवां है चश्मे-तर से आसुंओं के तार सावन में
ये तिफ्ले-अश्क़ हैं मेरे गले का हार सावन में

• उतर जाती हैं दिल में, जला देते हैं जो दिल को
वो आहें और होती हैं, वो नाले और होते हैं।

• इशारे अब्रुओं के भी हैं और तिरछी निगाहें भी
वो खंजर चल के रुकते हैं, ये छुरियां रुक के चलती हैं।

• दिले-वीरां हमारा शोरिश आबादे-तमन्ना है
हज़ारों बस्तियां बस्ती हैं इस उजड़े हुए घर में
ग़ज़ब है बन्दे-ख़ुद्दारी वा शौके-दश्त-पैमाई
उधर हैं पांव में चक्कर, इधर हैं पांव चक्कर में
समा सकता नहीं कुछ अपने जुज़ में, सर बसर बातिल
कि दिल में यार है, दिल यार की ज़ुल्फें मुअम्बर में।

• बंदों पे सितम बंदों के ऐ मेरे ख़ुदा देख
होता है खुदाई में तेरी आज ये क्या देख

• साफ दिल कहते हैं उस को इसलिए अहले-सफ़ा
ऐबो-ख़ूबी साफ़ रख देते हैं मुंह पर आइना

• तुझ को हैं नाले गरां और मुझ को मुश्किल ज़ब्ते-ग़म
नाज़ुकी अपनी भी देख और मेरी लाचारी भी देख।

• लबों पर जाने-ज़ार आती हुई मालूम होती है
ये दुनिया अब मुझे जाती हुई मालूम होती है

• शोख़ी न शरारत न हया और ही कुछ है
हम मरते हैं जिस पर वो अदा और ही कुछ है
मालूम शिफ़ाए-याबिए-बीमारे-ग़मे-हिज्र
सब कहते हैं मंज़ूरे-ख़ुदा और ही कुछ है।

• करम आये अताब आये सवाब आये जवाब आये
हमारे इजतिराबे-ग़म का देखें क्या जवाब आये।

• सांस चलता है मिरे सीने में कुछ रुक रुक कर
आज ये खेल बिगड़ता नज़र आता है मुझे

• घड़ी बीमारे-ग़म की आ गई क्या तुम न आओगे
उदासी बामो-दर पर छा गई क्या तुम न आओगे

• पासे-अदू से मुझ को मलामत न कीजिये
है है न कीजिये ये क़ियामत न कीजिये

• ख़ुदा से इक तरफ़, खुद से भी कोसों दूर होता है
बशर जिस वक़्त ताक़त के नशे में चूर होता है।

• यही हर हाल में क्यों ऐ सितम-ईजाद होता है
कि तुझ से जो वफ़ा करता है वो बर्बाद होता है।
ये कैसी बद-तमीज़ी है कि हर इरशादे-बेजा पर
बपा महफ़िल में तूफ़ाने "बजा इरशाद" होता है

• जी में आता है कि ये भी तज़रिबा कर देखिये
मर के मुमकिन हो विसाले-यार तो मर देखिए

• ताक़ते-ज़ब्ते-फुगां देखिये कब तक रहे
राज़े-महब्बत निहां देखिये कब तक रहे।

• अब तरीक़ा हुज़ूर का क्या है
इब्तिदा क्या थी इंतिहा क्या है

• अभी आप कमसिन हैं डर जाएंगे
न देखें मिरा दम निकलते हुए

• तस्कीं-असर था वादा-ए-बेऐतबार भी
यानि कि ऐतबार ही करना पड़ा मुझे।

• पाया न हम ने लुत्फ कोई दिन बहार का
यूँ बीतने को बीत गये दिन बहार के।

• जान पर खेलना मुश्किल है मगर याद रहे
खेलने पर कोई आ जाये तो आसान भी है

• नहीं चलती महब्बत में रियाज़ी
नहीं उन की मुकर्रर भी नहीं है

• भला जिस बज़्म में ग़ैरों की खिचड़ी पकती रहती हो
वहां कब ऐ दिले-नादां हमारी डाल गलती है।

• किसी को अपनी किसी आरज़ू से काम नहीं
दुआएं वक़्फ़ हैं उस आफ़ते-जहाँ के लिए

• मैं हूँ और आज़ारे-इस्तिकबाले-दुश्मन सुबहो-शाम
सौंप दी है उस ने अपने घर की दरबारी मुझे

• वे ताइर हो चुके आज़ाद जो इस वास्ते चुप हैं
फुगां करने से होते हैं दिले-सय्याद के टुकड़े
हवाए हमसरिए-कद्दे-बाला की सज़ा ये है
उड़ें अहले-चमन के सामने शमशाद के टुकड़े।

• ये कौन सैर को निकला है बाम पर शबे-माह
ये रात नूर के सांचे में ढल गई कैसी।

• कब से रुका खड़ा है जनाज़ा शहीद का
बैठे भी तुम नहीं अभी ज़ुल्फें संवारने।

• हाथ रह रह के मिरे बहरे-दुआ उठते हैं
यही ले दे के सहारा नज़र आता है मुझे।

• ये जल गया है तो अब बिजलियाँ भी चैन से हैं
बला था एक मिरा आश्यां चमन के लिए।

• वो ना-मुरादे-ज़ौक़-ख़लिश हूँ कि दश्त में
कांटे हैं सरनिगूं मिरे छालों के सामने।

• शैख़ जी ये सफाइयां तौबा
पी पिला कर बुराइयां तौबा।

• कहकहे ग़ैरों के हैं आठों पहर
  आफ़ते-जाँ है तिरी हम-सायेगी
  मौत बन कर आयेगा दिल का क़रार
  जान ले कर बेक़रारी जायेगी।

• किया ख़ूब वादा वफ़ा वाह वा
मियां वाह वा वाह वा वाह वा

• उमीदे-वफ़ा, 'वफ़ा' बुतों से
ऐ मर्दे-ख़ुदा, ख़ुदा ख़ुदा कर

• माज़ी की यादगार पे आ जा के रह गये
दिल पर जो दाग़ ख़ूने-तमन्ना के रह गये
ज़िक्रे-ख़ुदा है और न फ़िक्र-ए-मुआश है
हम आशिक़ी में दिन न दुनिया के रह गये।

• इस का गिला बजा कि ज़माना बदल गया
इस का इलाज क्या कि ज़माना बदल गया
साकी शराब ला की ज़माना बदल गया
मुतरिब! ग़ज़ल सुना के ज़माना बदल गया।

• ग़लत कहते हैं जो कहते हैं ऐसा हो नहीं सकता
उसी के हो गये सब जो किसी का हो नहीं सकता।