फुटकर शेर / राजेंद्र नाथ 'रहबर'
* अजीब बात है जो ख़ुद ही राह में गुम है
दिखा रहा है वो मंज़िल का रास्ता मुझ को
- शिमला में हम ने ये किया मह्सूस दोस्तों
ज़ुल्फ़े-दराज़ेऱ्यार का साया है ज़िंदगी
- 'रहबर` मैं देखता हूं उन्हें बस अक़ीदतन
हो और कोई बात ख़ुदा की क़सम नहीं
- ज़िंदगी के इक बिलकते मोड़ पर बिछुड़ा था जो
आज भी उस जाने वाले को सदा देता हूं मैं
- सहर होते ही कोई हो गया रुख्स़त गले मिलकर
फ़साने रात के कहती रही टूटी हुई चूड़ी
- शिकस्त खा के मुहब्बत में यूं उदास न हो
ये हार जीत से बिहतर है हारने वाले
- उठ एहतिमामे-जामे-मये-अर्ग़वां करें
शिमले में 'रहबर` आज तो सर्दी बला की है
- उट्ठा है फिर फ़साद का फ़ितना नगर नगर
मह्फ़ूज़ हर बला से हमारा मकां रहे
- वहीं पेड़ों तले छोटी सी कुटिया डाल कर रहते
तुम इस जंगल की हिरनी को कहां शहरों में ले आये
- उड़ के पहुंचा सब के सर माथे पे वो
कल तलक जो रास्ते की धूल था
- दुबई, जर्मनी, इंगलैंड और अमरीका
कहां कहां नहीं उर्दू ज़बान की ख़ुशबू
- हम को दरवेशी की दौलत भी मिली है फ़न के साथ
हम 'रतन` पंडोरवी के सीनियर शार्गिद हैं
- कुछ तो तस्कीन मिले मुझ से किसी राही को
मैं कोई पेड़ बनूं पेड़ का साया हो जाऊं
- आते जाते मुझे रौंदा करें बस्ती वाले
सोचता हूं कि तेरे गांव का रस्ता हो जाऊं
- मैं देखता हूं तुझे बस अक़ीदतन वरना
मिरी निगाह का मर्कज़ तिरा शबाब नहीं
- नाव खेते हुये आते हैं वो मिलने हम से
हम उन्हें ख़ाब जज़ीरों में मिला करते हैं
- यूं शाखे़-दिल पे तेरी यादों ने गुल खिलाये
जैसे कि कोई बच्चा सोते में मुस्कुराये
- तुम्हारी राह मैं अगले जनम भी देखूंगा
तुम आओगे तो मैं घी के दिये जलाऊंगा
- बढ़ के हम सर काट लेंगे दुश्मने-बेपीर का
संग-रेज़ा भी उठाये वो अगर कशमीर का
- अपने हाथों जो बहाये ख़त अब उनका क्या मलाल
उनके वो ख़त अब तो 'रहबर` गंगा जी के हो गये
- किये हैं कितने घरों के चिराग़ गुल उस ने
जो देखने में ख़ुदा सा दिखाई देता है
- चेहरे पे बिखर जाती हैं जब ज़ुल्फ़ें हवा से
यूं उन को हटाते हो, नहीं जैसे हटाते
- इस सूनी कलाई पे घड़ी क्यों नहीं पहनी
अच्छा ही किया बोझ घड़ी का न उठाया
- यूं हाथ की उंगली के कड़ाके न निकालो
ये भी दिले-आशिक़ की तरह टूट न जाये
- क्या हाथ से मैं एक तरफ़ उस को हटा दूं
जिस ज़ुल्फ़ ने आंखों को तिरी ढांप लिया है
- क्यों मौली कलाई से उतारी नहीं अब तक
दीवाली के पूजन को तो युग बीत गया है
- हम भूल भी जायेंगे अगर ख़ुद को किसी दिन
भूलेगी न उस के लब-ओ-रुख्स़ार की लाली
- हुक्मे-सफ़र जो आया तो रुख्स़त हुये मकीं
दीवार-ओ-दर पे लिक्खे हुए नाम रह गये
- आ जाओ कि बारिश में नहाने का मज़ा लें
कुछ दिन तो चलेगी कि ये सावन की घटा है
- तुझ को छुआ न था तो कोई पूछता न था
छू कर तुझे सलीब अज़ीज़े-जहां हुई
- दुआ है कि ऊंचे घरानों में जायें
मेरे शहर की नेक दिल लड़कियां
- कर के तूफ़ान के सिपुर्द मुझे
तुम किनारों से दोस्ती कर लो
- भेज दे तू देस में परियों के लोरी से मुझे
ऐ मुक़द्दस मां सुला दे एक थपकी से मुझे
- अंजाम हो बखै़र सफ़र का ख़ुदा करे
जुगनू की रौशनी में सफ़र कर रहे हैं हम
- ख़ारज़ारे-हयात में 'रहबर`
मेरे ज़ख्म़ों से ख़ून जारी है
- शैख़ की जन्नते पुर-फ़ज़ा से
मेरा हिन्दोस्तां कम नहीं है
- मैं ने तुम पर गीत लिखा है
तुम को अपना मीत लिखा है
- मंज़र हैं दिल-फ़रेब सुहाने हैं रास्ते
आना हमारे गांव अगर तुम से बन पड़े
- साधकों संतों से कुछ रौशनी लेते जाओ
कुछ मक़ामात पे रस्ते में अंधेरा होगा
- तू सलीबों का मसीहा था तुझे आता था
अपना पैग़ाम सलीबों की ज़ुबानी देना