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फुटकर / बेढब बनारसी

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वस्ल की भी रात कैसी रात है
मैं हूँ, बिस्तर है, व उनकी लात है
 
हमारी प्रेमिका की देखने में उम्र छोटी है,
मगर लड़ती है ऐसे वह गोया कैरम की गोटी है
 
जो जग में जर चाहियतु, जाय कचहरी बैठ
पीछे हाथ पसारि के धीरे धीरे ऐंठ
 
सारद बारद से लसे, नील बरन आकाश,
मानहुँ भारत देश में अंगरेजन को बास
 
'बेढब' या संसार में कबहुँ न मिलिये धाय
का जाने केहि भेष में सी. आइ. डी. मिल जाय
 
हिन्दू मुस्लिम लड़न को, बैठे ले तलवार
शिक्षक ज्यों स्कूल के, ट्यूशन को तैय्यार

हिन्दू मुस्लिम मेल की गति थी सुन्दर खूब
पथ बीचहि दिल फटि गयो, ज्यों साइकिल की ट्यूब

जिस जगह वह हों खड़े बस भीड़ उस 'स्पाट' है,
दिल नकद लेकर नहीं कुछ बोलते क्या ठाट है
'साल्ट' युक्त कपोल, मीठे होठ तुरशी आँख की,
यार का चेहरा नहीं है, आगरे की चाट है
 
घर के 'ग्रेट' हैं हम 'बॉस हैं
शान है, बीबी भी बी.ए. पास है
घर के भीतर हाल क्या बेढब कहूँ
लात है, बीबी है, हम हैं, सास है
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हिज्र में उनके हमारा आजकल यह हाल है
मुँह बना है 'वालकेनो' आँख 'वाटर फाल' है
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मुँह भरा यह नहीं मुहासोंसे
रामदाने की मीठी लाई है
देखते ही फिसल पड़ा यह दिल
उनका चेहरा नहीं मलाई है
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लेके मंचू को, नजर जापान की है चीन पर
खाके मीठा लालची जैसे झुके नमकीन पर
दूध घी मक्खन तुम्हारे वास्ते तैयार हैं
काट लेंगे जिन्दगी हम अपनी सोयाबीन पर
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