अँधेरी रात में
फुटपाथ पर बैठे
एक बूढे बाप ने
मुझसे पूछा
क्यों बांस की तरह
जल्दी बड़ी हो जाती हैं
उनकी बेटियाँ
गरीबी और जवानी
दो दुश्मनों को साथ लेकर
कैसे देख पाएगा वह
उन वासना के कीड़ों को
जो कुलबुलाते फिरते हैं
उसकी फुटपाथ के चारों ओर
कैसे सह पाएगा
उनकी गन्दी व छिछली बातें
जो गरम शीशे की तरह
उसके कानों में उतर जाएँगी
कैसे बचा पाएगा अपनी बेटी को
उन प्रलोभनों और सुनहरे वायदों से
जो अक्सर भँवरे फूलों को दिया करते हैं
मुझे लगा
किसी ने मेरा सीना चीर दिया
मैं क्या कर सकता था
नम आँखों से
सिवाय एक प्रार्थना के
हे भगवान्
या तो इन गरीबों को बेटियाँ न देना
अगर देनी ही हैं
तो फिर बड़ा न करना
बड़ा न करना !