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फुलबसिया / अनिरुद्ध नीरव

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फुलबसिया फुलबसिया
उतर गई
खेतों में
हाथों में लेकर हँसिया
फुलबसिया की काया
साँवली अमा है
चमक रहा हाथों में
किन्तु चन्द्रमा है
यह चन्द्रमा
दूध-भात
क्या देगा बच्चों को
लाएगा पेज और पसिया
फुलबसिया
पल्लू को खींच
कमर काँछ कर
साँय-साँय काट रही
बाँह को कुलाँच कर
रीपर से तेज़ चले
सबसे आगे निकले
झुकी-झुकी-सी एकसँसिया
फुलबसिया
खाँटी है खर खर खुद्दार है
बातों में पैनापन
आँखों में धार है
काटेगी जड़
इक दिन
बदनीयत मालिक की
बनता है साला रसिया ।