भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फुहारे / अंशु हर्ष
Kavita Kosh से
आसमान से बरसता पानी
कभी तेज़ कभी रिमझिम ...
सुखद अहसास है ...
ठंडी हवाओं का चलना
और बालकनी में बैठ
फुहारों से खेलना
लेकिन उसी पल याद आती है
कुछ ऐसे लोगों की
जिनके सर पर है खुला आसमान
और खुली सड़के ही है जिनकी बालकनी
क्या वह भी खेलते है इन फुहारों के साथ या
ये फुहारे खेल जाती है उनकी ज़िन्दगियो से