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फुहारे / संतोष श्रीवास्तव

ऐसा ही मौसम
समाया है मुझ में
कहाँ होश रहता
जो पड़ती फुहारें

कुछ तो रही होगी
मजबूरी उनकी
जो टूटी हैं बादल से
जमकर फुहारें

हर एक बूंद झलकाए
तस्वीर तेरी
हर एक बूंद देती है
दस्तक घनेरी

नहीं पढ़ सकोगे
मुझे याद रखना
मैं काग़ज़-सी भीगी
थी ज़ालिम फुहारें