भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फूँकों से ही नभ तक पाँव पसारे हैं / सूरज राय 'सूरज'
Kavita Kosh से
फूँकों से ही नभ तक पाँव पसारे हैं।
इस जग में इन्सां हैं या गुब्बारे हैं॥
अँधा-बहरा कर देती है जीत अगर
तब तो ऐ दिल अच्छा है हम हारे हैं॥
ख़ुशी अलग हो सकती है हम दोनों की
आँसू तेरे हों या मेरे खारे हैं॥
जिन होठों पर लफ़्ज़ तोतले होने थे
उन होठों पर कान चीरते नारे हैं॥
हाथ जोड़ के खड़े थे जो कल बूँदों के
वो सागर से करते आज गरारे हैं॥
ऐ दुनिया इन अरमानों पर तंज़ न कर
चटके झुलसे बिखरे मगर हमारे हैं॥
दुनिया किस्मत रिश्ते सबने ज़ख़्म दिए
यारों लेकिन सबसे अधिक तुम्हारे हैं॥
घर हो काँधों पर पाँव में हों रस्ते
उन आँखों के सपने भी बंजारे हैं॥
"सूरज" तुझको जलता देखें छुप-छुप के
तेरे रिश्तेदार ये चाँद-सितारे हैं॥