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फूँक / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
साबुन को घोला पानी में
फिर फुँकनी से मारी फूँक।
उड़े बुलबुले आसमान में
जादू भरी हमारी फूँक।
खेल अनोखा हमने खेला
लगा लिया बच्चों का मेला
फू...फू करके सबने फिर
बारी-बारी से मारी फूँक।
हवा हमारे साथ हो गई,
लाख टके की बात हो गई,
बने बुलबुले उड़नखटोले,
करने चली सवारी फूँक।
पर कुछ पल में प्यारे-प्यारे,
फुट-फुट हुए बुलबुले सारे,
क्या करती, फिर मन मसोसकर
बैठ गई बेचारी फूँक।