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फूटी है / हरीश भादानी
Kavita Kosh से
फूटी है
पीड़ा की हांडी
थकें न दो
कलझलती आंखें
एक शिला
मुझ को दे दीजे
बांधे रहूं
मुहाने दोनों
नवम्बर’ 77