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फूट गई पिचकारी / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
म्मू जी ने पिचकारी में,
रंग लबालब ठूंसा।
दौड़े गम्मू के पीछे यूं,
मार रहे हों घूंसा।
हाथ चलाया जोरों से तो,
फूट गई पिचकारी।
रम्मू के मुंह पर ही आई,
ठेल रंगों की सारी।
गम्मू पर तो गिरी बूंद न,
रम्मू रंगे रंगाएँ।
हाथ झटकते पैर पटकते,
घर को वापस आएँ।