फूट गेरो राज करो / रणवीर सिंह दहिया
भारत उन दिनों सामन्तों, राजा, नवाबों, जमीदारों व तालुक दारों की रियासतों व जागीरों, जायदादों में बंटा हुआ था। इनके निहित स्वार्थों के चलते आपस में टकराव और विरोध था। रैयत भी विभिन्न धर्मों, संप्रदायों, जातियों एवं गोत्रों में विभाजित थी। और इन तबकों के खाते-पीते पंडे-पुरोहित, चौधरी, सरदार, मुल्ला मौलवी और सामाजिक व साम्रदायिक इकाइयों के नेताओं में भी निहित स्वार्थों के कारण अपने-अपने समुदाय वाली गोल बन्दी बनाई हुई थी,हालांकि 18 वीं सदी और पहले के भी भक्ति आन्दोलन, सन्त सूफी परम्परा ने पुराण पंथी नजरिये की सामाजिक सास्कृतिक दिवारों को कुछ कमजोर तो किया था। इस माहौल का अंग्रेजों ने बहुत फायदा उठाया। एक समय था जब भारत में तीन सिपाहियों पर एक बरतानवी की नियुक्ति की गई थी। अलग अलग रैजमैंट तैयार की थी। क्या बताया भलाः
फूट गेरो राज करो का गुर अंग्रेजों ने अपनाया था॥
म्हारे लाडले भरती करकै उनको खूब दुलराया था॥
भारत की छाती पै मूंग दलैं इसकी पूरी तैयारी करली
मार-काट मची राज्यां मैं सबकी गद्यी पै नजर धरली
अंध विश्वास बढ़ा म्हारे मैं सोच्चण की ताकत हरली
जात-पात पै बंटे हुए थे हमनै नाश की कोली भरली
देशी गाभरू बनाकै फौजी अपने साथ मिलाया था।
भरती हो कै म्हारा बेटा बणग्या ताबेदार सिपाही फेर
मात पिता तैं मुंह मोड़ण मैं उसनै कति नहीं लाई देर
अंग्रेजां का गुणगाण करै दिन रात और श्याम सबेर
पाइया मुश्किल तै था बढ़ाकै होग्या कति सवा सेर
टूटे लीतर पाट्टे लत्ते अंग्रेजों ने वर्दी तै सजाया था॥
ये यू पी हरियाणा के छोरे फिरंगी के हुक्म बजावैं रै
अड़ौसी-पड़ौसी चाचा ताउ दरबारां मैं शीश झुकावैं रै
माल उगाही होज्या उसकी जो हम खेता मैं कमावैं रै
सिर भी म्हारा जूती म्हारी म्हारे अपणे डण्डे बरसावैं रै
सिपाही बेटा उनका होग्या बेराना के घोल पिलाया था॥
बढ़िया खाणा पीणा फौज मैं झोटे बरगे पुट्ठे होगे रै
दो दिन बिताये फौज मैं म्हारे बिराणे खूट्टे होगे रै
उनकी तै लागै स्वाद मिठाई म्हारे खारे बुट्टे होगे रै
अंग्रेजां के उनके दम पै म्हारी घिट्टी पै गूंठे होगे रै
कहै रणबीर बरोने आला न्यों अंग्रेज घणा बौराया था।