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फूट रहा नवप्रात, मस्त होकर भैरवी सुनाने दो / विमल राजस्थानी

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मित्र के नाम कवि की पाती

बंधु ! हमारे ही शोणित ने आज हमें ललकारा है
लिपट चरण से रोती लालों के लोहू की धारा है
मरे कई, कितनी ही माओं के आँगन वीरान हुए
छाती छलनी हुई, गुलबदन लथपथ-लहूलुहान हुए

कुछ ने आहें भरीं, फटी छाती, आंसू बाहर आये,
कुछ कायर संगीन देखकर त्राहि ! त्राहि !! कह चिल्लाये
ओ क्लीवों ! धिक्कार कोटिशः, लानत भरी जवानी पर
आनेवाली नस्ल थूक देगी इस कुटिल कहानी पर

नहीं लगाओ आग, न हत्यारों को गोली-बम मारो
अनशन के मिस ही बेशरमों, मृतकों पर आँसू वारो
सारे सूबे में विरोध की आग धधकती है देखो,
सुलग रहा सिंदूर, चमक चूड़ियाँ तड़कती है देखो

नन्हे-मुन्ने लाल भूख सह कर करते विद्रोह यहाँ
निभता नहीं धर्म प्राणों का रहता है व्यामोह जहाँ
लगता है ‘बेतिया’ प्रान्त के मानचित्र से लुप्त हुआ
सिंह विहीन हुआ पश्चिम चम्पारण मृतक-सुषुप्त हुआ

भ्रष्टाचारी, चोर-उच्चकों, क्लीव, गीदड़ों का घर है
अन्यायी शासन का जन-जन के मन में छाया डर है
क्रांति नहीं, ये शांत बने रह कर ही शेष प्रकट करते
कल कुत्तों की मौत मरेंगे, आज वीर बनकर मरते

हत्यारों को दे बधाइयाँ अधम हिलाते जो दुम हैं
इन्हें याद रखो ये जयचन्दों से नहीं तनिक कम हैं
रोम-रोम से लूट रहे हैं, डाकू हैं, हत्यारे हैं
तड़प रहे हम आह ! गगनचुम्बी महँगी के मारे हैं

नेताओं की नहीं, अरे ! यह देशद्रोहियों की टोली
रोटी के बदले जनता के सीनों को मिलती गोली
तुम्हें कसम पय आँचल की ले ओट पिलाने वाली की
है सौगन्ध तुम्हें नानक की, खीष्ट, मुहम्मद, काली की

निकल पड़ो घर-घर से बाहर, भर दो जालिम की जेलें
आओ तनिक देश की खातिर हम संगीनों से खेलें
बुलेट की बौछार वज्र की छाती से टकराने दो
फूट रहा नवप्रात, मस्त होकर भैरवी सुनाने दो

काली रातें नहीं रहेंगी, अंधकार छवि क्षय होगी
सूर्योदय होगा निश्चय ही, जयप्रकाश की जय होगी
मिटी न प्यास, और नर-लोहू दो दिल्ली की रानी को
कट-कट जाओ, खून बना डालो यमुना के पानी को

गला अस्थि, हड्डी का एक हिमालय नया खड़ा कर दो
हो जाओ बलिदान, वतन को ऊँचा और बड़ा कर दो
घुट-घुट कर मरने से तो बेहतर फाँसी का झूला है
ताजा याद, न देश अभी तक भगत सिंह को भूला है

कैसी मुक्ति कि जुल्मों की चक्की में पीसती चली गयी
तिलक लगाते नेता, जनता चन्दन घिसती चली गयी
बहुत हो चुका, नकली विष भी यहाँ ब्लैक में बिकता है
बंजर बना देश, करूणा का कमल यहाँ कब खिलता है

देश-भक्ति तो यहाँ प्लेग है, हैजा और महामारी
नस-नस में बेईमानी है, रोम-रोम में गद्दारी
झूठा भरम-धरम का, तीरथ-व्रत धोखा है, जाली है
कैसे बगिया हरी रहे, जब रक्षक-तक्षक-माली है

तक्षक के विष-दंत तोड़ने चलो-चलो,
पापों का यह घड़ा फोड़ने चलो-चलो
उल्टी गंगा बही, मोड़ने चलो-चलो
माँ-बेटे का प्यार जोड़ने चलो-चलो

सीना ताने हैं लाल, गोलियाँ खाने को
भुखमरी, गरीबी, भ्रष्टाचार मिटाने को
दिल्ली को छककर अपना खून पिलाने को
सिंहासन के पाये झकझोर हिलाने को

दें आशीर्वचन, पीठ पर इनके कर धर दें
सुनकर इनकी चीखें, सारी जेलें भर दें
मुड़ जायेगी संगीन, गोलियाँ कम होंगी
जल्लादों की आँखें उस दिन पुरनम होंगी
जिस दिन अन्यायी जन-चरणों पर लोटेगा
उस दिन भारत में राम-राज्य फिर लौटेगा

पुनश्च

गोली नहीं है देखती मुस्लिम का कलेजा
बूलेट बचा के चलती न क्रिस्तान का भेजा
छाती को चीर सन्न से हिन्दू के निकलती
सिख की जटा-घटा में न बुलेट है उलझती

जो जातिवाद का जहर नस-नस में समाया
इस नाग-पाश ने ही यह दुर्दिन है दिखाया
इस जातिवाद से नहीं अब काम चलेगा
जलता है सारा देश, अभी और जलेगा

                                      शेष अकुशल और अमंगल,
                                      तुम्हारा ही सहयोगाकांक्षी,
                                      कवि-मित्र