फूलमणि सिंकू / स्मिता झा
मैं जबरन विभाग में घुस आई
इस लड़की को देखती हूँ...
साँवली-सी, जींस में कसी
चेहरे पर निर्लिप्त उदासी
हाथों में झोला लिए हुए
मुझसे अंग्रेज़ी ऑनर्स में नामांकन के लिए
दरख़्वास्त कर रही थी...
बेबसी से भरी
बार-बार दस्तख़त कर देने के लिए
गुहार कर रही थी...
झुंझलाहट से भर मैंने पूछा...
तुम्हारा नाम...
फूलमणि सिंकू...
एस०टी० कोटा...उसने जोड़ा
इंटर कब किया...
पाँच साल पहले...
फॉर्म जमा किया...
हाँ....
सेलेक्शन लिस्ट में नाम है...
नहीं... तो फिर...?
मुझे एडमिशन चाहिए, मैडम
ठीक है, पर किसी दूसरे विषय में ले लो...
मैंने समझाया
नहीं, अंग्रेज़ी में ही
पर क्यों? अंग्रेज़ी ही क्यों?
पति नहीं रहा...
छोटे-छोटे पाँच बच्चे हैं
भूख से बिलखते रहते हैं
आज तो मेरा बाप सँभालता है...
पर कल?
इसलिए मैडम, अंग्रेजी ही
नौकरी तो अंग्रेजी पढ़ने से ही ना मिलता है...।