भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फूलों का गीत / प्रकाश मनु

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पापा, देखो, बगिया में कितने सारे हैं फूल,
पापा, इस क्यारी में तो कितने प्यारे हैं फूल!
ओस पड़ी तो मोती जैसे निखरे हैं ये फूल,
मम्मी का आँचल बनकर ज्यों बिखरे हैं ये फूल।

खूब पड़ी है धूप, धूप में झुलसे हैं ये फूल,
फिर भी दीदी की बिंदिया से हुलसे हैं ये फूल।
हवा चले तो टप्पा खाते, जैसे नन्ही गेंद,
फिर-फिर हँसते, खिल-खिल हँसते, क्या है इसका भेद?

देखो पापा, फिर उछालता गेंदा अपना शीश,
यह खुशबू जैसे गुलाब की देती है आशीष।
काँटों में भी कैसी खुशियाँ, कैसी इसकी आब,
इसीलिए तो हवा झूमकर कहती है आदाब!

कभी-कभी लगता है पापा, कहते हैं ये फूल,
दो दिन का जीवन है अपना, मत जाना यह भूल!
हमें दिलाते याद, सिखाते प्यार, प्यार, बस प्यार!
इसीलिए मन होता पापा, इन पर सदा निसार!