(एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में नाचते हुए बच्चों को देखकर)
सिर पर सुनहले फूलों का ताज
रंगारंग फूलों का गुलदस्ता
लिए हाथ में
आता है बच्चा
बच्चा हाथ पकड़कर मुझे ले जाता है वहां
जहां इस धूसर दुनिया के भीतर
रंगों में खिलखिलाती एक और दुनिया है।
यहां तालाब है खूबसूरत और लहरें
और कमल और सीपियां और मछलियां
यहां रंगों के भीतर रंग हैं
परतों के भीतर और और परतें
यहां हवाएं इठलाती, दरख्त झूमते-
तितलियां नाचती
और फूल खिलखिलाते हैं।
खिलखिलाता है
बरसों से दबा मुरझाया मन यहां
पुलक-पुलक कर
मुसकराते है सितार पर नग्मे...
यहां बच्चा एक रूप छोड़कर
एक और रूप लेता है
फिर एक और रूप
हर बार कुछ नया
कुछ और और नया-
लहरें
लहरों मं मिलती हैं
कुछ और और हो जाती है
...हर बार दंगों की झलमलाहट और लय और नाद
कुछ ऐसे
कि जैसे दूर से ही शारे मचाता आता है वसंत।
अब ताल नदिया में है नदिया समुद्र में
बच्चा तैर रहा है नदी में नदी से समुद्र....
और लो,
बच्चा समुद्र में गोते खा रहा है
और मुसकरा रहा है
और मैं हैरान
कि सितारों से भी अधिक चमकीली
हो चली है उसकी मुसकान
सुगंध से भी महीन उसकी काया-
फूल से भी कोमल
उसका स्पर्श
उसकी पहचान...
बच्चे के होठों से
किरणीली मुसकानें फूटती हैं
फूटते हैं नई सदी के गाने
उसके गीतों में अजब सी तुतलाहट है
और कभी न जाने वाले वसंत की नरमी, वसंत की इस्तक
अजब सा आनंद है उसके गीतों में
जिसमें सारी की सारी दुनिया
एक नए ढंग से खुलती है
और मैं देख रहा हूं
पत्थर के बीच-पत्थर को
फोड़ता
अभी-अभी उगा है एक हरा पौधा
-नहीं तिनका-हवाओं में थरथराता...
वह मैं हूं।
और मैं फूलों की घाटियों में
उछाल दिया जाता हूं
नृत्यरत खुशबुओं के बीच
जहां नामों और पहचानों से अलग एक दुनिया है
जहां मुझे खुद को नए सिरे से ढूंढना है।