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फूलों के कोमल करतल पर / सुमित्रानंदन पंत

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फूलों के कोमल करतल पर
ओसों के कण लगते सुंदर,
मुग्धा का मदिरालस आनन
उमर मुग्ध कर लेता अंतर!
ओ रे, कल के मोह से मलिन,
बीत गया अब वह कल का दिन!
उठ, अब हँस कर पान पात्र भर,
चूम प्रेयसी के मदिराधर!