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फूलों को चुराते हुए / प्रेरणा सारवान
Kavita Kosh से
दूर से देखा है
या सुना है मैंने कि
घास बहुत कोमल होती है
न कभी छुआ
न कभी चलकर
देखा है
पाँवों ने उस पर
परन्तु जानती हूँ
और सहा है मैंने
काँटे बहुत तीखे
कठोर होते हैरहें
क्योंकि कई बार
टूटे हैं हृदय में
चुभे हैं हाथों में
फूलों को चुराते हुए ।