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फूलों को फूल ही रहने दें / तारा सिंह
Kavita Kosh से
- बैठ गया है, मेरे दिल में
- बनकर कोई तांत्रिक
- जाने कौन अशुभ घड़ी थी, वह
- जो मैंने किया उसको आमंत्रित
- एक अनगढ़ा पत्थर - सा
- पड़ा हुआ था, सड़क के किनारे
- उसको चमकाने के लिए
- हम क्यों नगर ले आए
- गदले पानी के गढ़े में
- एक जंगली पौधा- सा खड़ा था
- हम क्यों उसे अपने आँगन में
- तुलसी-चौरे पर लाकर बोये
- रातों के अँधेरे में घूमता था
- निशाचर - सा , इधर- उधर
- हम क्यों उसकी राहों में
- दीप जलाकर उजाला किये
- सौ बातों की एक बात है
- जो जहाँ हैं, वहीं रहें
- फूलों को फूल ही रहने दें
- पत्थर को पत्थर ही कहें