फूलों वाला कुर्ता / नीरजा हेमेन्द्र
पुरानी वस्तुओं के बक्से से
निकल आया आज
तुम्हारा दिया हुआ
रंगीन फूलों वाला कुर्ता
मेरी स्मृतियों से विस्मृत हो चुके
इस कुर्ते ने मेरे समक्ष सजीव कर दी हैं
युवा दिनों की निर्जीव-सी स्मृतियाँ
कुर्ते के धूमिल पड़ते रंगों से
झाँकने लगा है तुम्हारा युवा चेहरा
कितना भिन्न है तुम्हारा ये चेहरा
उस चेहरे से...
अब यूँ ही दिख जाते हो तुम
पति और पिता के रूप में पथ में कहीं
समय ने अंकित कर दिये हैं
अनेक चिन्ह और रेखायें तुम्हारे चेहरे पर
माथे की झुर्रियाँ और
आँखों के नीचे गहराते स्याह गड्ढे
व्यक्त कर रहे हैं
तुम्हारे विगत् दिनों के संघर्श
तुम्हारी आँखें अब भी व्यक्त करती हैं
अपनी पीड़ा... ठीक उसी प्रकार
जैसे व्यक्त करती थीं युवा दिनों में
नेह की अभिव्यक्ति... स्नेह की अभिव्यक्ति
तुम वही हो... मै वही हूँ...
हमारे प्रेम की वो... व्याकुलता
वो सर्मपण...
समय की परतोें के साथ
धूमिल हो चले हैं
कुर्त्ते के साथ तुम्हारी स्मृतियाँ भी
आज अकस्मात् समक्ष आ गयी हैं
जैसे समय की परतों में रखा
तुम्हारा दिया हुआ कुर्ता
वो सर्द शाम... ठंडी सड़क पर चलते-चलते
जब सिहरन भरी हवाओं ने
चुपके से आकर कहा था कि-
आगे मार्ग बन्द है
मैं और तुम वापस लौट आये थे
उस समय यह कुर्त्ता
सम्हाल कर रख लिया था मैंने
इस बाक्स में...
रख रही हूँ यह कुर्ता
समय के बाक्स में वापस
तुम्हंे... तुम्हारे परिवार के साथ
पुनः स्मरण करने के लिए...