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फूलौ है पंचरंग फूल सबई रंग फूलियौ / बुन्देली

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फूलौ है पंचरंग फूल सबई रंग फूलियौ,
फूलौं कुसंभ रंग फूल कृस्न सिर सोहियौ।
चंदन की चार पलकिया महल बिच डारियौ।
पौड़ें यशोदा के लाल सबई सुख मानियौ।
भीकम के पाँचऊ पुत्र छठई बेटी रूकमिन,
रूकमिन भई वर जोग इन्हें वर ढूँढ़ियौ।
कोऊ कहै दीनानाथ तो कोऊ कहै दीवावंद कौं
कोऊ कहै शिशुपाल चन्देरी के राव कौं।
आजुल कहै दीनानाथ तौ आजी कहै दीनावंद कौ,
काकुल कहै शिशुपाल चन्देरी के राव कौं।
कोरे से कागज मँगाओ हरद की गठिया पीरी सीं,
गौअन कौ गोबर मँगाओ सो आँगन लिपवाइयौ।
सोने की मुहर डराऔ सो बेटी की लगुन करौ।
सुघर से बम्मन बुलाओ सो लगुन लिखवाइयौ,
कच्ची सूत लपेटो ऊपर हरी दूब है।
बुलाओ सखी दो चार तो मंगल गवाइयौ,
सखियाँ मंगल गायें तौ धिया अनमनी भई।
आँसू चुयें दिन रात तौ ढुर ढुर पौंछियौ,
कैसी बेटी अनमनी कैसे अँसुआ ढारियौ।
कहौ तौ मैया मोरी अटा से गिर परैं,
कहौ तो जहर विस खायें असुर संग न चलैं।
काहे कौ बेटी मोरी अटा से गिरौ,
काहै कौ जहर विस खाओ असुर ही लिखे लिलार
चतुर वर का करै।
इतनी जो सुनकै बेटी बम्मन कै गई,
अरे अरे बाप के पुरोहित इक विनती मोरी सुनौ।
किसन कौं दियौ तुम पाती हमारी कही तुम करौ,
जो दैहैं पिता भीसम सो हमसे लै लियौ।
अरे अरे रूकमनि बेटी तू मों खों फँसाहै,
सुनहै पिता भीकम तौ विरग छुटाहैं।
काहे के कगदा करे काहे की मस करी मस,
काहे की करी लिखनिया तो पाती लिख भेजिहै।
अंचल फाड़ कागज करौ कजरा की करी मस,
छिगुंरी की करी लेखनिया सो लिख दीने दस बोल।
कित के तुम बम्मन कित कौं जात हौ,
कौना की लयें तुम पाती कौना कौं देत हौ।
रूकमनि के हम बम्मन द्वारका हम आये हैं,
रूकमनि की लयैं पाती किसना कौं देत हैं।
बाँच पाती फटत छाती कठिन बोल रूकमनि लिखे,
साँझ आहौ कुँआरी पइहो भोर तो बियाही मिलौं।
आई है असुर बरात नगर खलबल फरे,
कुँअल गये हैं सूख महल भोजन घटे।
हती ऊजरी रैन अंधेरी हो गई,
हती सुफल की गैल कंटीली हो गई।
बुलाओ सखी दो चार असुर वर देखियो,
देखे असुर जू के रूप सखी डर भागियौ।
आई है किसन बरात नगर आनन्द भये,
कुँअल गये उमड़ाय महल भोजन बढ़े।
हती अंधेरी रैन उजेरी हो गई,
हती कंटीली गैल सुफल हो गई।
बुलाओ सखी दो चार तो किसनाजू के रूप देखियें
देख किसनजू के रूप सखी सब मोहिये।
सोने के कंकन हाथ मोतिन की मुदरी,
इनमें है रूकमनी बेई तुरत पहिचानियौ।
हाथ पकर तुरत रूकमन कृस्न ने रथ बैठारियौ,
रूकम ने बाँधे हथियार तो पीछे गरआइयौ।
किसन ने लीने हैं बाँध तो खम्भ लटकाइयौ,
रूकमन करै दरयाफ भैयन खम्भ न बाँधियो।
बिन आरे की भीत तौ लागत भियाउनी।
बिन भैया की तौ बैन फिरत दिवाउनी।
बिन बछरा की गाय तो फिरत दिवाउनी,
बिन पूत की माय तौ फिरत दिवाउनी।
बिन सारन ससुराल सो संगै कौ चलै,
बिन सारन ससुराल सो जीजा को कहै।
औरत है त्रिया जात तो रूकम रूकम करै,
तब तौ लिखत ती पाती अब विनती करै।
पहुँचे द्वारका में जाय तो धान बुआइहैं,
दैहैं धान कौ नेग तौ सारे कहाइहैं।
जिय आवै रूकमनि बियाह तौ गाई सुनाइयौ।
कटहैं जनम के पाप सुनहैं सुख पाइयौ।
कै गुँइया तुम कीनै उपवास के तुम व्रत करे,
कै गुँइया दीनै गउ के दान सो कृष्णा वर मिले।
न गुँइया हम कीने उपवास न कछु व्रत करे,
तुमहि सखिन की भाग कृस्ना वर मिले।