क्या करोगे
शून्य प्राणों
को भरोगे
पथ कहाँ, वन
जटिल तरू-घन,
हरा कंटक--
भरा निर्जन
खेद मन का
क्या हरोगे
हवा डोली
घास बोली
आज मैंने
गाँठ खोली
फूल, तुम खिल--
कर झरोगे
क्या करोगे
शून्य प्राणों
को भरोगे
पथ कहाँ, वन
जटिल तरू-घन,
हरा कंटक--
भरा निर्जन
खेद मन का
क्या हरोगे
हवा डोली
घास बोली
आज मैंने
गाँठ खोली
फूल, तुम खिल--
कर झरोगे