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फूल, तुम खिल कर झरोगे / त्रिलोचन
Kavita Kosh से
क्या करोगे
शून्य प्राणों
को भरोगे
पथ कहाँ, वन
जटिल तरू-घन,
हरा कंटक--
भरा निर्जन
खेद मन का
क्या हरोगे
हवा डोली
घास बोली
आज मैंने
गाँठ खोली
फूल, तुम खिल--
कर झरोगे