भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फूल अपने रंग-रूप पर कितना भी गुमान करे / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


फूल अपने रंग-रूप पर कितना भी गुमान करे
उसके मन में सीमाओं का बोध अवश्य है,
वह जानता है
कि सुगंध बनकर ही वह तुम्हे पा सकता है
यही उसके खिलते जाने का रहस्य है.