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फूल ख़ुशबू से जुदा है अब के / नासिर काज़मी
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फूल ख़ुशबू से जुदा है अब के
यारो ये कैसी हवा है अब के
दोस्त बिछड़े हैं कई बार मगर
ये नया दाग़ खिला है अब के
पत्तियां रोती हैं सर पीटती हैं
क़त्ले-गुल आम हुआ अब के
शफकी हो गई दीवारे-ख़याल
किस क़दर खून बहा है अब के
मंज़रे-जख़्मे-वफ़ा किसको दिखाएं
शहर में क़हते-वफ़ा है अब के
वो तो फिर ग़ैर थे लेकिन यारो
काम अपनों से पड़ा है अब के