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फूल खिलते ही रहे, कलियाँ छटकती ही रहीं / मख़दूम मोहिउद्दीन

फूल खिलते ही रहे, कलियाँ चटकती ही रहीं
दिल धड़क जाए तो हासिल ? आँख भर आई तो क्या ।

शाम सुलगाती चली आती है ज़ख़्मों के चिराग़
कोई जाम आया तो क्या, कोई घटा छाई तो क्या ।

काकुलें लहराईं, रातें महकीं, पैराहन उड़े
एक उनकी याद ऐसी थी, नहीं आई तो क्या ।

दूरियाँ बढ़ती भी हैं, घटती भी हैं, मिटती भी हैं
साअतें<ref>क्षण</ref> आईं, यही साअत नहीं आई तो क्या ।

शब्दार्थ
<references/>