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फूल गेन्दवा न मारो / साहिर लुधियानवी
Kavita Kosh से
अजी फुल गेन्दवा न मारो, न मारो
लगत करेजवा में चोट
दूँगी मैं दुहाई
काहे चतुर बनत
ठिठोरी करत हरजाई
फूल गेंदवा न मारो...
हे दहका हुआ ये अंगारा, अंगारा
दहका हुआ ये अंगारा
जो गेन्दवा कहलाये है
अजी तन पर जहाँ गिरे पापी
वहीं दाग़ पड़ जाये है
अंग-अंग मोरा पीर करे
और करके कहे
फुल गेन्दवा न मारो...
रुक जाओ, रुक जाओ
रुक जाओ, रुक जाओ
रुक जाओ
ना सताओ मोहे जुलमी बलम, ओ बलम
मान जाओ बिनती अबला की
देखो-देखो अब दूँगी दुहाई
काहे चतुर बनत
ठिठोरी करत हरजाई
फुल गेन्दवा न मारो
न मारो, न मारो, न
फुल गेन्दवा न मारो
न मारो
लगत करेजवा में चोट
करेजवा में चोट, करेजवा में चोट
अरे फुल गेन्दवा न मारो...