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फूल जैसा खिला खिला कहिए / विनय कुमार

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फूल जैसा खिला खिला कहिए।
और काँटों का सिलसिला कहिए।

सारी बातें अवाम तक पहुंचें
पानी पानी हवा हवा कहिए।

चांद का एतबार नामुमकिन
शाम ढलते दिया-दिया कहिए।

आप ख़ुद को पुकारिए पहले
ख़ौफ़ से तब ख़ुदा-ख़ुदा कहिए।

कुछ भी कहिए ‘नहीं कहा’ कहता
ऐसे झूठे को और क्या कहिए।

मर न जाए ग़ज़ल मिठासों में
एक मिसरा ज़हर बुझा कहिए।

रोज़ सुनते हैं हम नई चीज़ें
सब नयों से भी कुछ नया कहिए।