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फूल ने हँस कर कहा इंसान से / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

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फूल ने हँसकर कहा इंसान से
जी अगर जीना तुझे मेरी तरह।
शूल चुभता है निरंतर, किंतु मैं
शूल को भी प्यार करता आ रहा,
तोड़ती दुनियाँ मुझे, फिर भी सदा
मैं गले का हार बनता आ रहा।
सेज का शृंगार मैंने ही किया
और शव का साथ भी मैंने दिया;
इसलिए मैं कह रहा इंसान से
जी, अगर जीना तुझे, मेरी तरह।
बात है कल शाम की, मैं भी वहाँ
था खड़ा जब प्यार की अर्थी चली,
और यह देखा-चिता की ज्वाल में
प्यार की अर्थी अकेली ही जली।
किंतु अपना द्वीप जलता देखकर
जल पतंगे ने कहा इंसान से
प्यार को रोकर न यों बदनाम कर
जल अगर जलना तुझे मेरी तरह।