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फूल पर बैठा हुआ भँवरा / गुलाब सिंह
Kavita Kosh से
फूल पर
बैठा हुआ भँवरा
शाख पर गाती हुई चिड़िया
घास पर बैठी हुई तितली
और तितली देखती गुड़िया
हमें कितने
दिन हुए देखे !
घाट के
नीचे झुके दो पेड़
धार पर ठहरी हुई दो आँख
सतह से उठता हुआ बादल
और रह-रह फड़कती दो पाँख
हमें कितने
दिन हुए देखे !
बाँह-सी
फैली हुई राहें
गोद-सा वह धूल का संसार
धूल पर उभरे हुए दो पाँव
और उन पर बिछा हरसिंगार
हमें कितने
दिन हुए देखे !
घुप अँधेरे
में दिए की लौ
दिए जल पर भी जलाते लोग
रोशनी के साथ बहती नदी
और उससे नाव का संयोग
हमें कितने
दिन हुए देखे !