फूल पे धूल बबूल पे शबनम देखने वाले देखता जा / क़तील
फूल पे धूल बबूल पे शबनम देखने वाले देखता जा
अब है यही इंसाफ़ का आलम देखने वाले देखता जा
परवानों की राख उड़ा दी बाद-ए-सहर के झोंकों ने
शम्मा बनी है पैकर-ए-मातम देखने वाले देखता जा
जाम-ब-जाम लगी हैं मोहरें मय-ख़ानों पर पहरे हैं
रोती है बरसात छमा-छम देखने वाले देखता जा
इस नगरी के राज-दुलारे एक तरह कब रहते हैं
ढलते साए बदलते मौसम देखने वाले देखता जा
मसलहतों की धूल जमी है उखड़े उखड़े क़दमों पर
झिजक झिजक कर उड़ते परचम देखने वाले देखता जा
एक पुराना मदफ़न जिस में दफ़्न हैं लाखों उम्मीदें
छलनी छलनी सीना-ए-आदम देखने वाले देखता जा
एक तेरा ही दिल नहीं घायल दर्द के मारे और भी हैं
कुछ अपना कुछ दुनिया का ग़म देखने वाले देखता जा
कम-नज़रों की इस दुनिया में देर भी है अँधेर भी है
पथराया हर दीदा-ए-पुर-नम देखने वाले देखता जा