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फूल सब हँसने लगे हैं हर कली कहने लगी / नन्दी लाल
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फूल सब हँसने लगे हैं हर कली कहने लगी।
आ गया ऋतुराज खुशबू संदली कहने लगी।
शीत भर परदेश में जो भी कमाई हो गयी,
आइए घर लौट साजन मनचली कहने लगी।
कूकने कोयल लगी है आम सब बौरा गये,
क्या सुहावन शाम को पछुवा चली कहने लगी।
जौ सिकोरे ले खड़ा गेहूँ चना गदरा गये,
देख लो जी खोलकर सरसों फली कहने लगी।
क्रोध को सब भूल बैठे हैं खुशी चारों तरफ,
हर तरफ है काम की आंधी चली कहने लगी।
यूँ न आना सामने से बंद दरवाजा हुआ,
इस तरह पिछवाड़ की खिड़की खुली कहने लगी।
दोष कुछ उसका नहीं केवल हमारी भूल थी,
आइएगा घर कभी वह जब मिली कहने लगी।