फूल से लिपटी हुई ये तितलियाँ अच्छी लगीं / कुँवर बेचैन
दुलहिनों के भाल-चिपकी बेंदियाँ अच्छी लगीं
फूल से लिपटी हुई ये तितलियाँ अच्छी लगीं।
आज तेरा नाम जैसे ही लिया वो रुक गईं
आज सच पूछो तो अपनी हिचकियाँ अच्छी लगीं।
जब से मैं गिनने लगा इन पर तेरे आने के दिन
बस तभी से मुझको अपनी उँगलियाँ अच्छी लगीं।
प्यार के त्योहार पर वो माँग भरती दुलहिनें
और वो मंहदी रचाती लड़कियाँ अच्छी लगीं।
जिनके साये में बनाए बुलबुलों ने घोंसले
वो सभी शाखें वो सारी पत्तियाँ अच्छी लगीं।
बंद आँखों-सी किसी के ध्यान में डूबी हुईं
धीरे-धीरे जो खुलीं वो खिड़कियाँ अच्छी लगीं।
फूल-जैसे सुर्ख होठों के निशां देने के बाद
उसने जो रख लीं वो मेरी चिट्ठियाँ अच्छी लगीं।
प्यास के मिटते ही ये क्या है कि मर जाता है प्यार
जब बढ़ीं नज़दीकियाँ तो दूरियाँ अच्छी लगीं।