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फूल हँसते हैं हमें भी / हरिवंश प्रभात
Kavita Kosh से
फूल हँसते हैं हमें भी, मुस्कुराना चाहिए,
भंवरे गाते हैं हमें भी गुनगुनाना चाहिए।
ज़िंदगी संघर्ष करने का ही केवल नाम है,
काँटों पर भी अपने कदमों को बढ़ाना चाहिए।
सुख कोई बढ़कर नहीं सहयोग से उपकार से,
गिर पड़े जो राह में उसको उठाना चाहिए।
फल लगे तरुवर की डाली का इशारा जानिए,
नम्रता में अपने सर को भी झुकाना चाहिए।
विश्व में हर दृष्टि से आगे हमारा देश हो,
व्योम तक उन्नति पताका को उठाना चाहिए।
खोलती मछली न मुँह को फंसने की न बात थी
लोभ में पड़कर न जीवन को गंवाना चाहिए।
सोच का आये नया जल ज्ञान के तालाब में
जल पुराना हो जमा, उसको बहाना चाहिए।
आ रही ‘प्रभात’ की किरणें जगाने आप को,
जाग जाएँ खुद भी औरों को जगाना चाहिए।