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फूल हंस पड़ा / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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नीला-नीला सहज सलोना,
फूल हंस पड़ा गमले में
हवा चली तो हिला-हिला सिर,
करने लगा नमस्ते जी।
सोते पड़े अभी तक बच्चों,
जल्दी क्यों न उठते जी।
डाल पत्तियाँ हो गए शामिल,
मस्ती के इस अमले में
हाय हेलो भंवरों से की तो,
तितली से हुई दुआ सलाम।
नन्हीं दोस्त चींटियों से भी,
उसने झुककर किया प्रणाम।
छूकर कान निकल गई चिड़िया,
ड रा नहीं उस हमले में।
तभी किरण सूरज से आकर
छूने लगी फूल के गाल।
धूप भरी उसकी झोली में,
किया फूल को माला माल।
सुनकर गूंज हंसी की, ढेरों,
पेड़ जुड़ गए मजमें में।