भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फूल / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
Kavita Kosh से
कŸोॅ सुन्दर लागै छै फूल
हाँसै आरो हँसावै फूल
वन-उपवन सगरो खिलै फूल
खिलखिल ख़ुशी लुटावै फूल
धरती रो सिंगार छेकै ई
बच्चा मन मनुहार छेकै ई
भौंरा के छेकै ई गुन-गुन गान
रस होय छै एकरो अमृत समान
देवोॅ माथा पर चढ़ै फूल
सुंदरी गला वरमाला फूल
लाशोॅ पर भी सजै फूल
शिव माथा पर भी चढ़ै फूल
छै कली-कली सुरभित उदार
फूलोॅ से ही मधुमय संसार