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फूल / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
खामोश हरियाली के बीच
पर्वतनुमा इस जगह में
एक शांत कब्र ढकी हुई फूलों से
बार-बार निगाह जाती है उन पर
लगता है चेहरा शव का हमेशा ढका रहे
केवल फूल ही फूल दिखलाई दें,
सारे दुखों को ढक लेते हैं फूल
फूल ही हैं वे जिनकी तरफ आंखें दौड़ती हैं,
इनके ही भार से हल्का हो जाता है
किसी के भी छोड़ जाने का दुख