भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फूल / संध्या रिआज़

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फूल किस पेड़ से उपजा है कौन पूछता है
पूछो बस इतना कि कौन सा
फूल कितने दिन किस रंग में
कितनी खुष्बू देता है
 पेड़ किस काम आएगा काट के किसी दिन
किसी लाष के साथ जला दिया जायेगा
फूल जब तक खिला है रंगीन है खुष्बू देता है
हमेषा पूछा और पूजा जाता है
फूल को याद है पेड़
और पेड़ भी चाहता है फूलों को
पर ये भी सच है कि दोनों का साथ रहना
नियती नहीं है
कोई तोड़ लेता है
कोई टूट जाता है और कोई
मुरझा के नीचे गिर किसी के पैरों तले
कुचला जाता है

फूलों के अलग रंग होते हैं
अलग खुष्बू होती है और
और अलग आकार होता है
पर इंसान हर फूल की खासियत
एक फूल में संजोकर
अपने घर में सजाना चाहता है
फूलों ने भी किसी हद तक
समझौता कर लिया है
एक फूल कई रंगों में पैदा होने लगता है
खुष्बू भी बदलने की कोषिष करता है
आकार भी थोड़ा बहुत बदल लेता है
पर पूर्ण होना तो संभव नहीं
तो दो-चार दिन साख पाकर मुस्कराता है
मुरझाते ही किसी डिब्बे या तालाब में
फेंका जाता है
तब फूल को पेड़ बहुत याद आता है
काष! फूल फिर पेड़ जा लगता
ये पेड़ भी सोचता है और फूल भी।