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फेरा / प्रेमरंजन अनिमेष
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वहीं का टिकट माँग बैठता हूँ कई बार
वहीं होकर
और टिकट काटने वाला भी चौंकता नहीं
न घूरता न हँसता
जहाँ होता है आदमी
वहाँ भी
आना होता है कई-कई बार
नये सिरे से !