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फेरों-कन्यादान का गीत / 10 / राजस्थानी
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राजस्थानी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
डेरे से लौटते समय का गीत
सायब ऊंची सी मेडी रे रही, जठ दिवलो बल रे मंझिल,
कसूमल बीर बधावणे।
जठ जाय... पोड़ीया, ब्यान आईछ सुख भर निंद्र। कसूमल बीर बधावणो।
ब्यान जाय सायर दे जगाविया, सायब थे क्यें सूता नचीत जी। कसूमल बीर बधावणो।
बाई बनड़ी परणायर मेला सासर, गोरा जंवाई रा झेला नारेलजी। कसूमल बीर बधावणो।
गोरी क्यों कर मेला सागर, गोरी क्यों कर झेला नारेलजी। कसूमल बीर बधावणो।
गोरी हंस हंस मेला सासर, गोरी मूलकर झेला नारेल। कसूंमल बीर बधावणो।