फेरों-कन्यादान का गीत / 9 / राजस्थानी
बधावा
दोय डूंगरा बीच बेल पसरी, बीरा र आंगण आंबो मीलीयो।
थे तो सुनो सुनो जी म्हारा सिमरथ, सायब, बेन पाडोसन मती राखजो।
वे तो सो ही जी देख सो ही मांग, उठ प्रभात म्हासू कलह कर।
बे तो आप बैठणरा घुड़ला जी मांग, म्हारी ओढ़णरी बाला चुंदड़ी।
तू तो गेली ये गोरी बोल न जाण, लाव गमाव थारा जीभ को।
म्हे तो आमा जी सामा मेल चुणावा, अदबिच राखा बाईरो बारणो।
म्हे तो दातन मोडर हेलोजी पाडा, झारी भर ल्याव म्हारा भाणजा।
म्हे तो जिमण बैठर हेलोजी पाडा, आय परोस म्हारी बेनड़ी।
थे तो एवड़ देवड़ म्हारा भाई र भतीजा, ज्या बिच खेल भोला भाणजा।
भतीजा देख्या म्हारो मनजी हरक्यो, भाणज देख्या म्हारो मन भर्यो।
थे तो धिन धिन ओ सजनारा ओ जाया, बेनड रो मान बड़ो कर्यो।
थे तो बढ़जो रे बीरा बड़ रे पीपल ज्यू, फलजो नारेला रा रूक ज्यू।
अणियारस आंगण बाईरी भावज उभी, द्यो म्हारी नणद आशीषड़ी।
थे तो सात ये भावज पूत जणज्यो एकज जणजयो सुगणी धीयड़ी।
थारी धियड़ल्या परदेश दिज्यो, ज्या चित आय भोली नणदली।
म्हारो ओ बीरा अजरावण हो जो भावज ओ छा जल री माछली।