भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फेर ओ कहलनि / मन्त्रेश्वर झा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फेर ओ कहलनि
अहाँ शिकायत नहि करू
मरैत अछि सभ क्यो
अहूँ मरब तऽ मरू
डिबिया सँ अन्हार नहि मेटायत कयिों
सूर्य हम, टेमी बनि
अर्ध्य टा करू
हमरे चेहरा बुझू अपनो चेहरा
दर्पण मे देखि
मोन छोट ने करू
सपना गढ़ि देखब से मना नहि करब
जगला पर बन्धुआ सन कर्म टा करू
पड़ायब से रस्ता नहि चक्रव्यूह सँ
बचायब अछि प्राण तकर ध्यान टा करू
फेर ओ कहलनि अहाँ तोतरायब कथि ले
बाजू नहि चुप्प रहू, मरब तऽ मरू
फेर ओ कहलनि
अहाँ शिकाइत नहि करू
मरैत अछि सभ क्यो
अहूँ मरब तऽ करू
फेर ओ कहलनि...