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फैशन के मारे / समझदार किसिम के लोग / लालित्य ललित

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फैशन में इतराते हम
कितने नंगे हो चले हैं
कितने नंगे सच में
विज्ञापनों की दुनिया
कर रही है
पर्दाफाश सपनों का
और खुद को सपनों में
खोजते, भरमाते
कभी-कभी इतराते भी
हमारे
नौजवान
उलझ चुके हैं
इस मायावी चक्कर में
और
जो चक्र है
वहीं तो रोमाँचित करता है
सच बताऊं
मैं कभी भी रोमाँचित नहीं
हुआ
इन चक्करों से और
चक्रधारी लोगों से
इसलिए वहीं हूँ
फैशनरहित
लिहाफ में
उसी शिद्दत से
रमा हूँ
यही अपनी अकड़ है
खालिस है जी जो बिल्कुल