फैशन शो / बाजार में स्त्री / वीरेंद्र गोयल
जगमगाती हैं रोशनियाँ, रंगबिरंगी
धीरे-धीरे क्रमवार
फिर एकदम तेज झमाके से
इतराती, इठलाती टाँगें
चमकती हाथी दाँत-सी
देह के इस जंगल में
थरथराता हुआ
मदमदाता हुआ सब-कुछ
दर्शक भरते हैं आहें
करते हैं अश्लील बातें
चटखारे ले-लेकर
भाग्यशाली बैठते हैं करीब
छूने की हद में
ललचाता है आग का फूल
चिंगारियाँ बिखेरता हुआ
तैयार है हर एक
फना हो जाने को
उत्पाद रह जाता है पीछे
उद्घोषक करता है प्रशंसा
कम्पनी की,
निर्माता की,
बीच-बीच में
वस्त्र बदलता है चुटकुलों के
संगीत कानफोडू
कभी मेल खाता है
कभी बेमेल हो जाता है
खत्म होने पर
लगता है जैसे
छिन गया हो स्वर्ग का राज्य
पदच्युत कर दिया हो इन्द्र को
और श्रापित सभी अप्सराआंे को
बहुत दिनों तक
फिर वो कहाँ जी पाता है
जन्नत से गिरा
क्या वापस जा पाता है?