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फैसला / आभा पूर्वे

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तुम
हाथ भर के मेरे आंगन में
रोप गये थे
तुलसी का जो पौधा
वह रातोरात
किस तरह पीपल का वृक्ष हो गया
उसकी बड़ी-बड़ी शाखायें
दूर-दूर तक
देखते-ही-देखते फैल गयीं
जिसे घर नहीं था
उसके लिए
वह घर बन गया
और कई-कई लोगों के लिए
आँखों की किरकिरी
वे ही लोग
जिनके लिए
(पीपल की विशालता बोझ हो गई है)
वे काट रहे हैं
शाखायें
गिरा रहे हैं पत्ते
वे उन्हें काटते-काटते
मेरे आंगन तक पहुँच सकते हैं
यही सोच कर
मैं पीपल के धड़ में
समा गयी हूँ
कि इसकी जडें़
इसका धड़
कटने नहीं दूंगी
अपने कट जाने तक
पीपल का यह वृक्ष
जिसे तुम
मेरे छोटे से
आंगन में लगा गये थे।