भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फोग रो गुरुमंतर / शंकरसिंह राजपुरोहित
Kavita Kosh से
लूआं रा लपरका
अर
आंधी रा झपरकां सूं आयगी
फोग रै मूंडै फेफी,
फेरूं ई ऊभो है थिर
मरुधरा माथै
सींव रै रुखाळै सो अड़ीजंत।
तिरकाळ तावड़ै सूं
बुझावै आपरी तिरस
लीलीछम कूंपळा बण जावै
किणी ऊंट री जुगाळी
अर बीज बधावै-
रायतै रौ स्वाद।
मन में कठै है खोट ?
सींव रा रुखाळा ई लेवै
जिणरी ओट।
जोग लियोड़ो सो फोग
दुनिया नैं देवै
गिरस्थी चलावण रो गुरुमंतर
अर
संतां नैं सीख।