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फोडोॅ नै / कैलाश झा ‘किंकर’

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जात-पात के बात बोलि केॅ फोडो नै।
डोर एकता केॅ हमरोॅ तो तोडो नै।।

केकरो घर मेॅ उत्सव होय छै गाबै सब,
संकट मेॅ भी दौड़ल-दौड़ल आबै सब,
हम्मर गाँव मेॅ प्रेम-दया कें खेती छै,
कुर्सी खातिर हम्मर खेती रौंदोॅ नै।।

साँप छुछुन्दर के फेरा मेॅ डालै छै,
हमर समस्या केॅ बातोॅ मेॅ टालै छै,
समरसता केॅ दीया के बुझबै वाला,
सहनशीलता हम्मर आरो तौेलोॅ नै।

जे काँटा तों छींट रहल छो गडतोॅ कल,
आखिर नीम मेॅ तितका गुठली फड़तोॅ कल,
जोडै लै कोय नें फोडै ले छै सब्भै,
लहर लेॅ आगि मेॅ घी के बोतल खोलो नै।