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फ्यूंली–दो / वीरेन डंगवाल
Kavita Kosh से
फागुन में जब वे खतरनाक उतारों से
घास काट कर लाएंगी
तो गट्ठर में बंध आयेंगे
वे फूल भी.
भीटों में घास के बीच में ही छिपे होते हैं
उनके झाड़
वसन्त् के वे विनम्र कांटें भी
पसंद आते हैं मवेशियों को
फूलों की तो बात ही क्या कहना
बल्कि
जब चारे के बीच दिखती है नांद में
वह मसली हुई पीताभा
तब
खुशी से गोरूओं का नथुने फुंकारना
और कान फटफटाना तो देखो !